Wednesday 10 December 2014

Eating style about Ayurved



स्वाद

भौतिक शरीर एवं भोजन दोनों पाँच आवश्यक तत्वों; पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुएवं आकाश से मिलकर निर्मित हैं ।आयुर्वेदिक भोजन हमारे शरीर के अन्दर इनआवश्यक तत्वों के बीच संतुलन उत्पन करता है जब इसे छ: आयुर्वेदिकस्वादों;मीठा, नमकीन, खट्‌टा, तीखा, कसैला एवं कड़वा का सही मात्रा मेंप्रयोग कर तैयार किया जाता है । छ: स्वादों की अपनी अनुपम तात्विक संरचनाएँहोती हैं जो उन्हें विशेष उपचारिक गुण-धर्म प्रदान
करती हैं । एक संतुलित आहार इनका स्वास्थ्यकर संयोजन होगा ।

मधुर स्वाद (पृथ्वी एवं जल तत्व)

मधुर स्वादवाले खादपदार्थ सर्वाधिक पुष्टिकर माने जाते हैं । वे शरीर सेउन महत्वपूर्ण विटामिनों एवं खनिज-लवणों को ग्रहण करते हैं जिसका प्रयोगशर्करा को पचाने के लिये किया जाता है । इस श्रेणी में आनेवाले खादपदार्थोंमें समूचे अनाज के कण, रोटी, पास्ता, चावल, बीज एवं बादाम हैं । अनेक फलएवं सब्जियाँ भी मीठे होते हैं । कुछ मीठा खाना हमारी तत्काल क्षुधा कोतृप्त करता है; यह हमारे शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढाता है और इसकाशान्तिकारक प्रभाव भी होता है । लेकिन मीठे भोजन का अत्यधिक सेवन हमारेशरीर में इस चक्र को असंतुलित करता है एवं मोटापा तथा मधुमेह को जन्म देताहै ।
गुण भी माधुर्य, स्नेह गौरव, सव्य और मार्दव है, अतः मधुर रसकफवद्धर्क है, इसके सेवन से शरीर में सुख की प्रतीति होती है.शरीर के सभीधातुओं को बढ़ाता है तथा धातुओं के सारभूत ओज की वृद्धि करने के कारण यहबल्य जीवन तथा आयुष्य भी है । शरीर पोषक- पुष्टि कारक एवं जीवन प्रद है ।

खट्‌टा स्वाद (पृथ्वी एवं अग्नि तत्व)

इन वर्गों में आनेवाले खट्‌टे खद्पदार्थों में छाछ, खट्‌टी मलाई, दही एवंपनीर हैं I अधिकांश अधपके फल भी खट्‌टे होते हैं । खट्‌टे खाद्पदार्थ कासेवन करने से आपकी भूख बढ़ती है; यह आपके लार एवं पाचक रसों का प्रवाह तेजकरती है । खट्‌टे भोजन का अति सेवन करने से हमारे शरीर में दर्द तथा ऐंठनकी अधिक सम्भावना रहती है ।

खट्टे पदार्थवायु नाशक तथा वायु कोअमुलोमन करने वाला पेट में विदग्धता करने वाला, रक्त पित्त कारक, उष्णवीर्य, शीत स्पर्श, इन्द्रियों में चेतनता लाने वाला होता है ।

नमकीन स्वाद ( जल एवं अग्नि तत्व)

प्राकृतिक रूप से समुद्री घास एवं समुद्री शैवाल हमारे शरीर को निर्मलकरने तथा अधिवृक्क ग्रंथियों, गुर्दाओं, पुरस्थ एवं गलग्रंथि को मजबूत करनेमें मदद करता है । इसमें पोटैशियम, आयोदीन होता है जो सोडियम को संतुलितकरने में मदद करता है । प्राकृतिक संतुलन करनेवाले तत्वों से रहित कृत्रिमनमक शरीर में द्रवों के धारण को बढा़ता है और इस प्रकार गुर्दा को प्रभावितकरता है एवं रक्त-वाहिकाओं तथा सभी तंत्र व्यवस्थाओं को प्रभावित करता है ।समग्र रूप से यह शारीर में जीव-विष को शरीर में धारण करने के लिये उत्पन्नकर सकता है ।
नमकीन स्वाद जड़ता को दूर करने वाला, काठिन्य नाशक तथासब रसों का विरोधी, अग्नि प्रदीपन रुचि कारक, पाचक एवं शरीर में आर्द्रतालाने वाला, वायुनाशक, कफ को ढीला करने वाला गुरु स्निग्ध तीक्ष्ण और उष्णहै । यह नेत्रों के लिए आवश्यकहै, सैन्धव लवण अहितकारी नहीं ।

तीखा स्वाद (अग्नि एवं वायु तत्व)

तीखे खाद्पदार्थों में प्याज, चोकीगोभी, शोभांजन, अदरख, सरसों, लाल मिर्चचूर्ण एवं केश्वास शामिल हैं । तीखे खाद्पदार्थों में उच्च उपचारिक गुणहोते हैं; उनका नमकीन भोजन के विपरीत प्रभाव होता है । यह तंतुओं के द्रवकी मात्रा को कम कर देता है, श्वाँस में सुधार लाता है एवं ध्यान केन्द्रितकरने की शक्ति में सुधार लाता है । तीखी जड़ी-बूटियाँ मन को उत्तेजित करताहै तथा मस्तिष्क में रक्त-संचार की वृद्धि करता है । तीखे स्वाद का अतिसेवन अनिद्रा, बेचैनी तथा चिंता को बढ़ा सकता है ।
तीखा स्वादअरोचिष्णु, अरुचि, विष कृमि, मूर्च्छा, उत्क्लेद, ज्वर, दाह, तृष्णा, कण्डूआदि को हरने वाला होता है । रुक्ष-शीत और लघु है,कफ का शोषण करने वालादीपन एवं पाचन होता है ।

कड़वा स्वाद (वायु एवं आकाश तत्व)

कड़वे खाद्पदार्थ सामान्य रूप से हरी सब्जियों, चाय से संबंधित है । कड़वा भोजन पाचन एवं चयापचयी दर में सहायता करता है ।
कडवे पदार्थ दीपन पाचन है । उष्ण होने से प्रतिश्याय कास आदि में उपयोगीहै । इन्द्रियों में चैतन्य लाने वाला, जमे हुए रक्त को भेदकर विलयन करनेवाला होता है ।

कसैला स्वाद (वायु एवं पृथ्वी तत्व)

इसश्रेणी में आनेवाले खाद्पदार्थों में अजवाइन, खीरा, बैंगन, काहू, कुकुरमुत्ता हैं । सेव, रूचिरा, झड़बेरी, अंगूर एवं नाशपाती भी कसैले होतेहैं । फल प्राय: शरीर के द्रवों, लसीका एवं पसीने की सफाई का काम करता है ।यह केशिका छिद्र रोकने का भी काम करता है; त्वचा एवं बलगम झिल्ली का उपचारकरत है ।
रक्तपित्त अतिसार आदि में ये द्रव पुरीष तथा रक्तादि कोरोकने के लिए उपयोगी है । शीतवीर्य, तृप्तिदायक, व्रण का रोपण करने वालातथा लेखन है ।

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