श्वसन
तंत्र
जिन्दा रहनेके लिए सबसे
बैजिक जरूरी है सांस लेना हम सांस न ले शके तो तुरंत ही मर जायेंगे |
या हमारी सांस लेने की
प्रक्रिया में कोई रूकावट आती है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते है | इसी लिए हमारा
स्वसन तंत्र ठीक होना चाहिए |
श्वसन तंत्र के अंग : नाक
, श्वास नली , फेफड़े
हम चाहे तो मुंह से भी सांस
ले सकते है, पर ये सही नहीं है | हम नाक से सांस ले तो नाक के अन्दर बाल होते है, वो बायो इलेक्ट्रिक चार्ज होते है, डस्ट
पार्टिकल उसमे फस जाते है | साथ ही नाक में एक श्लेष्म नामका एक तरल निकलता है |
जो डस्ट और वायरस बेक्टेरिया को वंही जमा देता है | जिससे हम इन्फेक्शन और एलर्जी
से बच सकते है |
सांस की नली के माध्यम से
नाक के जरीए आई हुई हवा फेफड़ो तक पहुँचती है | ये अन्न नली के साथ ही अन्दर की और
जाती है | सांस की नली में स्वर पेटी आई हुई है | इसके जरिए हम ह और अ बोल सकते
है, सांस
की नली अन्दर जाकर दो हिस्सोमे बट जाती है| हमारा फेफड़ा दो हिस्सोमे बटा हुवा होता
है या यु कहू दो फेफड़े होते है|
फेफड़े का काम :
फेफड़े हमारे शारीर के लहू
को शुद्ध करता है | हमारा शारीर जब क्रिया करता है तो तब खून में से ऑक्सीजन ले
लेता है और कार्बन डायोक्साइड मिलता है |कार्बन डायोक्साइड वाला खून फेफड़ो मे जाकर
वापस ऑक्सीजन वाला खून बनता है | उसमे वापस ऑक्सीजन की मात्र बढ़ जाती है | हमारा दायां
फेफड़ा बाएं से एक इंच छोटा, पर कुछ अधिक
चौड़ा होता है। पुरुषों के फेफड़े स्त्रियों के फेफडो से कुछ
भारी होते हैं। इनके भीतर अत्यंत सूक्ष्म कोष्ठ होते हैं जिनको ‘वायु कोष्ठ’ (Air cells) कहते हैं। इन
वायु कोष्ठों में
वायु भरी होती
है। एक बार हम सांस (‘श्वास’) लेते है तब वायु कोष्ठ मेसे खून में ऑक्सीजन भर जाता है और कार्बन डायोक्साइड
‘प्रश्वास’ के जरिये बाहर निकल जाता है | इस पूरी प्रक्रिया को ‘श्वसन क्रिया’ कहते है | बीस
साल से बड़ी उम्र के तंदुरस्त व्यक्ति में ‘श्वसन क्रिया’ एक मिनट में 16 से 20 बार होती है |
जब हमारे खुन में ऑक्सीजन
की मात्रा बढती है तो हमें ताजगी महसूस होती है | और जब ऑक्सीजन की मात्रा घटती है
तो आलस्य और थकान महसूस होने लगती है | कई बार आँखों के सामने अँधेरा भी छाने लगता
है | इसी लिए अच्छा हो
की फेफड़ो में हवा अवर जवर ठीक से हो | हमें पूरा ऑक्सीजन मिले , सांस में रुकावट
ना आये | सांस फुले नहीं | लहू शुद्ध रहे | शारीर पूरी शक्ति से काम कर सके |
हमारे दिमाग को पूरा प्राण वायु मिलता रहे | तिन मिनिट से ज्यादा देर तक दिमाग को
ऑक्सीजन ना मिले तो दिमाग काम करना बंध कर देता है |
ऑक्सीजन वाला शुद्ध लहू
सीधा हार्ट ( हृदय ) में जाता है | हार्ट के जरिए पुरे शारीर में फ़ैल जाता है |
फेफड़ों की बीमारियां :
न्युमोनिया , क्षय , दमा , इन्फेक्शन
ब्लोकेज
फेफड़े के लिए अच्छा :
साइकिलिंग , स्विमिंग , वोकिंग, योग – प्राणायाम , पौष्टिक आहार , एवं गाजर , सेब, द्राक्ष, अरलुशी
, तुलशी |
अष्टांग योग का एक प्रकार
है प्राणायाम , प्राणायाम और आयुर्वेद के संयुक्त इलाज से कमजोर हो चुके फेफड़े भी
एक दम ठीक हो जाते है | तब तंदुरस्त लोगो के लिए प्राणायाम और खानपान में सुधार से
क्या कुछ नहीं हो सकता !
फेफड़ों के लिए बुरा : डस्ट
पार्टिकल ( धूल के रज कण ) , प्रदुषण , एलर्जिक चीजे , अनियंत्रित खान
पान , व्यसन , सुस्त जीवन शैली , आदि |