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उतरायण भारत का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। उत्तरायण का अर्थ है “उत्तर की और जाना” ये सूर्य के लिए है। इस दिन के बाद भारत से देखने पर सूर्य उत्तर की और उगना सुरु करता है।
ये एक खगोलीय घटना है,
भारतीय सभ्यता में प्रकृति को काफी महत्व दिया जाता है। और ये एक प्रकृति से
जुडी घटना है।
इस त्यौहार की खास बात
ये है की ये एक ऐसा त्यौहार है जो अंग्रेजी केलेंडर के मुताबिक भी हर साल निश्चित
तारीख को आता है। वरना भारतीय त्यौहार
अंग्रेजी केलेंडर के मुताबिक नहीं होते। क्युकी भारतीय केलेंडर चंद्र पर आधारित होता है।
इस त्यौहार से एक और बात
साफ होती है। की भारतीय सभ्यता को
भूगोल का अच्छा ज्ञान था और सालो से हमारी संस्कृति में जुड़े - बसे ये सारे
त्यौहार कोई ना कोई प्रकृति के पहेलु को उजागर करते है।
उतरायण की सूर्य की घटना
का सीधा सम्बन्ध आकाश से है। इस लिए इस त्यौहार को आसमान के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को गुजरात
में काफी धूम धाम से मनाया जाता है। गुजारत के करीब हर गावो और शाहेरो में 14 जनवरी को सुबहसे लोग अपनी या
दूसरों की छातों पे चड जाते है। साथमे ढेर सारी पतंगे लिए और फिरकी। ( दोर से भरा एक लकडीका साधन )
यहाँ और भी बहोत कुछ
होता है। जैसे सुरक्षा के इंतजाम
और ढेर सारा खाना। जिसमे गुड की चिकी,
जिंजरा ( कचे हरे चने ), गन्ना, आदि सारी चीजे होती है।
दोपहर को खास, पुरे
गुजरात में “ऊँधिया का शाक” एक मिक्स सब्जी जारूर होती है। जोर जोर से गाना बजाना
और दूसरों की पतंग जब कटती है सब जोर से चिल्लाते है। “ कायपो छे
! ”
गुजरात गवर्नमेंट भी इस
त्यौहार को बड़े पैमाने पे मनाती है। ओर इसे इंटरनेशनल फंक्शन बना दिया है। देश विदेश से भारी मात्रा
में लोग इस त्यौहार का आनंद लेने के लिए गुजरात के “ इंटरनेशनल काईट फेस्टिवल ”
में आते है।